Monday 22 May 2017

IIMC यज्ञ विवादः दर्द साझा करने से पहले फैक्टवा तो चेक कर लो गुरुदेव

''निर्भया बलात्कार कांड हो या अन्ना का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन, मोमबत्तियां जलाकर विरोध जताने का तरीका सहज स्वीकार्य हो चुका है। जेसिका लाल के हत्यारे मनु शर्मा को जब अदालत ने अभियोजन पक्ष की लचर पैरवी  के बाद रिहाई के आदेश दिए थे, तब भी दिल्ली के इंडिया गेट पर मोमबत्तियां जलाईं गईं थीं। मोमबत्ती जलाना भी भारतीय परंपरा नहीं है, यह ईसाई परंपरा से आई है। तब तो बहुसंख्यक समुदाय ने इस परंपरा का विरोध करने की बजाय स्वीकार ही किया, फिर किसी संस्थान में यज्ञ और हवन का विरोध क्यों? ‘राष्ट्रीय पत्रकारिता-मीडिया और मिथ’ विषय पर आयोजित कार्यक्रम की शुरुआत में अगर आयोजकों ने पारंपरिक दीप प्रज्ज्वलन की बजाय हवन करने की ही ठान ली तो इससे आफत कैसे आ गई, यह समझ में नहीं आता।''

एक सुपरिचित पत्रकार के ब्लॉग से साभार।


अब हमारा पढ़ें,

सर, हम निर्भया बलात्कार के बाद विरोध प्रदर्शनों में लगातार गए थे। सिर्फ मोमबत्ती आपको याद रही लेकिन सरकार के विरोध में राष्ट्रपति भवन तक चढ़े जाना आप भूल गए। आप भूल गए उस सर्दी में वॉटर कैनन, लाठियां और आंसू गैस के गोले तक झेले थे हमने।

बड़ी आसानी से आपने मोमबत्ती जलाकर विरोध करने को ईसाई सभ्यता से जोड़ दिया। ईसाई किसी की याद में मोमबत्ती जलाते हैं विरोध में नहीं और ना ही मोमबत्ती जलाने के लिए कोई प्रीस्ट बुलाना पड़ता है। हवन कर्मकांड ना होकर अगर इसी तरह की अनौपचारिक चीज है तो मैं आपको और आपके पूरे आयोजन मंडल को चैलेंज करता हूं कि इसे प्रूव करें।

अगर नहीं है तो ये नाटक और बेतुकी तुलना क्यों? आपने बड़ी आसानी से इसे गंगा-जमुनी तहजीब से जोड़ते हुए इसकी तुलना सत्यनारायण की कथा/नवरात्रों से कर दी जो कि नितांत ही व्यक्तिगत आयोजन हैं। आप प्रदर्शनकारियों को भाई-छात्र बता रहे थे और जब केजी सुरेश ने उन्हें राक्षस कहा तब आपकी जुबान सिल गई थी। आप बहुसंख्या हैं, सत्ता में हैं इसका मतलब ये नहीं है कि जो मन आएगा वो करेंगे।


फोटो 26 जनवरी की है, हमने ही खेंची थी

आपने गलत तो किया ही उसके बाद उसे स्वीकार ना कर के सफाई में कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा कर रहे हैं। बड़ी आसानी से आपने विरोध करने वालों को वामपंथी बता दिया और खुद को संघी कहे जाने पर चिढ़ जाते हैं। वाह गुरूजी, कहां से लाते हैं इतना टैलेंट?

आपने अपना दर्द साझा किया है कि मीडिया में वामपंथियों को ही नौकरी मिल रही है और टैलेंटेड लोगों की कदर नहीं हो रही। आप अपने वक्त में जिस टीवी के एडिटर थे उस दौर आपने जिनको भी इंटर्नशिप/नौकरी दी मैं चैलेंज कर सकता हूं कि 80% डिजर्व नहीं करते थे, वो सिर्फ इसलिए वहां थे क्योंकि उनकी विचारधारा आपसे मिलती थी।

आप वामपंथ की बुराई करते हैं और दक्षिणपंथ को बड़े प्यार से संभाल लेते हैं जबकि सच्चाई यही है कि वामपंथ और दक्षिणपंथ दोनों बराबर रूप से खतरनाक हैं। केरल के लेफ्ट और उत्तर भारत के संघी/हियुवा और तमाम बगलबच्चों की हरकतें मिला लें, सेम टू सेम ना निकलें तो कहें।

लिखने को बहुत कुछ है लेकिन इस मुद्दे को जितना ही उछाला जाएगा IIMC उतना ही बदनाम होगा इसलिए बंद करते हैं। बस एक अपील करेंगे, किसी को राक्षस/लेफ्टी बताने से पहले उसके बारे में रिसर्च कर लिया करें। JNU कैंपस में होने वाले हिरण्यकश्यप दिवस का बदला IIMC में दुर्गापूजा कराकर मत लें।

आप JNU जाकर बदला लें ना, लेकिन आप नहीं जाएंगे क्योंकि वहां कोई KG नहीं बैठा जो आपको प्रश्रय देगा। हर गलत हरकत का विरोध पहले भी किया था आज भी करूंगा। बॉनफायर हुआ था तो भी विरोध में था और यज्ञ हुआ तो भी विरोध किया।

बाकी जो आपके चेले इधर-उधर लिख रहे हैं कि शराब-सिगरेट मिल जाए तो चुप हो जाएंगे विरोध करने वाले, उनको बता दीजिएगा कि उनकी GDP से ज्यादा की हफ्ते में बियर पी लेते हैं इसलिए जलें ना, बराबरी करें।

खैर, अभी तो जो करना था आपने कर लिया क्योंकि पावर आपके पास है, अब हो सके तो थोड़ा पढ़ाई का लेवल भी बढ़ा दें। किस्सागोई करने वालों की जगह प्रैक्टिकल नॉलेज देने वालों को क्लास लेने भेजिए और नौकरी देने आ रहे लोगों से थोड़ा खुले दिल से पेमेंट करने की गुजारिश करा दें, महती कृपा होगी।

शेष सब कुशल-मंगल है।

प्रणाम
अफसोस? आपका ना हो सका, सूरज़

Sunday 2 April 2017

भगत सिंह ने किया भारत में रहने से इनकार!


साल 2017, मार्च का महीना है उत्तर भारत की सर्दियां भारतीय राजनीति की तरह अपने पतन और गर्मियां नेताओं के झूठे वादों, करप्शन की तरह अपने उत्थान पर थीं। तारीख थी 23 मार्च और 86 साल पहले ‘शहीद’ हुए भगत सिंह पूर्वोत्तर भारत, राजगुरू पूर्वांचल और सुखदेव साउथ इंडिया में दोबारा जन्म लेकर जवान हो चुके थे।

वो हैरान थे यह देखकर कि जिस देश के लिए उन्होंने अपना सबकुछ बलिदान कर दिया वो देश तो कहीं था ही नहीं। भगत सिंह को यह समझ नहीं आ रहा था कि तमाम हिंदी भाषी राज्यों के लोग उन्हें चिंकी क्यों बुला रहे थे। जब उन्होंने यह बात राजगुरू और सुखदेव से कही तो उन्होंने बताया कि लोग उन्हें भी हिकारत की नजरों से देखते हैं क्योंकि सुखदेव को हिंदी नहीं आती और राजगुरू की अंग्रेजी थोड़ी कमजोर थी। तीनों ने सोचा कि युवा हमेशा से बदलाव लाता है तो क्यों ना युवाओं से ही इस बदलाव के बारे में पता किया जाए।
यही सोच यह तीनों देश की राजधानी दिल्ली पहुंचे। सीपी के सेंट्रल पार्क में लगे तिरंगे को देखकर तीनों भावुक हो गए। एक बार को तो उन्हें लगा कि देश वैसा भी नहीं है जैसा उन्हें लगता था। सेंट्रल पार्क में लगी भीड़ से उन्हें लगा कि लोग यहां देशभक्ति की भावना में आए हैं, यही सोचकर तीनों पार्क में घुसे। लेकिन वहां तो सीन ही दूसरा था। तिरंगे को नीलगगन मान युवा प्रेमी जोड़े उसके नीचे प्रेमातुर थे। भगत ने एक युवा से पूछा, भाई आज कौन सा दिन है? लड़के ने पहले तो हिंदी सुनकर उन्हें ऊपर से नीचे तक घूरा और लगभग चौंकते हुए कहा, 23 मार्च है और क्या है। राजगुरू ने जब यही सवाल दोहराया तो नौजवान ने बड़े रूखे तरीके से उन्हें झिड़क दिया।
यहां से निराश तीनों थोड़ा आगे बढ़े तो कुछ युवा उन तीनों की मूर्ति पर मालाएं चढ़ा रहे थे। पूछने पर बताया कि वो लोग अपने शहीदों को याद कर रहे हैं। आगे पूछने पर पता चला कि उनके नेता अरविंद जी ने स्वराज की लड़ाई शुरू की थी, कई लोग तो अरविंद जी को अगला केजरीवाल भी बता रहे थे। हालांकि केजरीवाल जी हाल ही में देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने वाले खालिस्तानी आतंकी के घर रात बिताकर आए थे।
थोड़ी दूर पर ही कुछ युवा भगवा कपड़ों में भगत सिंह के पोस्टर के साथ थे। पोस्टर में भगत ने केसरिया/पीला साफा बांध रखा था। ये देखकर भगत ने अपने साथियों से पूछा कि क्या उन्हें याद है कि भगत ने कभी ऐसा कोई साफा बांधा था? जवाब ना में मिलने पर उन्होंने सोचा कि क्यों ना इन्हीं से पूछें। पूछने पर जवाब मिला कि भगत सिंह राष्ट्रवादी थे, इसलिए उन्हें विवेकानंद की तरह केसरिया साफा पहना दिया। ये वही युवा थे जो अक्सर लोगों को पाकिस्तान भेजने/गाली-गलौज और मारपीट करने के लिए मशहूर थे। इनके दल में तो एक ऐसा भी प्रवक्ता है जो भगत सिंह के नाम पर सेना बनाकर खुलेआम गुंडागर्दी करता है।
खैर यहां से हारकर जब वो और आगे बढ़े तो सुखदेव ने दोनों का ध्यान कांग्रेस मुख्यालय की तरफ खींचा। भगत यह देखकर काफी खुश हुए कि कांग्रेस का वजूद आज भी है। वहां लगी बापू की बड़ी सी तस्वीर देख भगत और उनके साथियों को लगा कि आज भी इस देश में बापू के सिद्धांतों की बात होती है। वहां अपनी और अपने साथियों की तस्वीरों पर चढ़ी फूल-मालाएं देखकर भगत सिंह को थोड़ा संतोष हुआ और उन्होंने वहां मौजूद कार्यकर्ताओं से पूछा कि देश को आजाद हुए तो इतने साल बीत गए, गरीबों की समस्याएं कब दूर होंगी? उस कार्यकर्ता ने कहा, जाकर मोदी से पूछो हमें क्या पता।
किसी तरह से पता करते वो तीनों मोदी के पास गए किसी तरह मुलाकात भी हुई। वहां मोदी से जब वही सवाल किया गया तो मोदी बोले, ‘मितरों कांग्रेस ने इतने सालों तक देश को लूटा है। इनके किए गढ्ढों को भरने में वक्त तो लगेगा ही।’ मोदी की ये बात सुनकर उन तीनों ने सोचा कि शायद मोदी कांग्रेस के किए गढ्ढों को भरने के लिए मिट्टी लाने ही विदेश जाते हैं। तभी उन्हें याद आया कि मोदी अपने चुनाव प्रचार में कहते थे कि सरकार बनी तो भगत और उनके साथियों को कागजात में आतंकी से बदलकर क्रांतिकारी दर्ज कराएंगे। उन्होंने इस मुद्दे पर सवाल किया तो मोदी आदत के अनुसार अपनी योजनाएं गिनाने लगे।
हर तरफ से निराश होकर वो तीनों लोग पत्रकारों से मिले और अपना परिचय देकर उनसे इस दुर्दशा पर कुछ सवाल करने चाहे तो उन्होंने उल्टे उनसे ही उनकी विचारधारा पूछ ली। ये तीनों कम्युनिज्म को मानते हैं ऐसा सुनते ही पत्रकार दो धड़ों में बंट गए। एक उन्हें एंटी नेशनल तो
दूसरा धड़ा उन्हें मास लीडर साबित करने पर तुल गया। यह सुनकर तीनों चौंक गए। उन्हें लगा था कि पत्रकारिता अब भी उसी रोटी, पानी और जेल वाली नदी की धारा पर प्रवाहित हो रही होगी लेकिन यहां तो सबकुछ बदल चुका था। किसानों को छोड़ कैमरे क्लीवेज की तरफ शिफ्ट हो चुके थे। भूखे मर रहे गरीबों की जगह पत्रकार सेलिब्रिटी की डाइटिंग को ब्रेकिंग न्यूज बता रहे थे।
वो पत्रकारों से कुछ कहते कि तभी अचानक से उसी जगह से नए जमाने के कम्युनिज्म को मानने वालों का गुजरना हुआ। पत्रकार उन्हें देखते ही दौडे़ और उनसे गुड़ पर चींटी की तरह लिपट गए। उनसे पत्रकारों ने तमाम सवाल किए। जिसमें एक सवाल था भारत के टुकड़े होने पर। ये सवाल सुनते ही तीनों चौंके कि अरे ये कौन सा नया कम्युनिज्म आ गया जो भारत के ही टुकड़े करने पर आतुर हो गया है।
सवाल-जवाब का दौर खत्म होने के बाद उन्हें ये देख कर औऱ आश्चर्य हुआ कि उन तीनों की तस्वीर पर कलियुग के कम्युनिस्टों ने हार माला चढ़ाने के बाद हम लेके रहेंगे, आजादी के नारे लगाए। आजादी के इस नारे का मतलब उन्हें समझ ही नहीं आया। हालांकि उनके आजादी के नारे में बस्तर, कश्मीर, कुरबे-जवार सब शामिल थे लेकिन ये जाने क्यों ये नया कम्युनिज्म उन तीनों को रास ना आया। फिर भगत ने सुखदेव से
पूछा यार ये कम्युनिज्म तो हमसे अछूता ही रह गया था। कौन सा कम्युनिज्म है ये? लेनिन, रूसी क्रांति से जुड़ी किताबें तो मैंने भी पढ़ी है लेकिन वो सिर्फ समानता लाने, देश को जोड़ने और एकता की बात करते हैं। आखिर वो कौन सी जगह है जहां ये कम्युनिज्म पढ़ाया जा रहा है।
पता करते करते वो उस विश्वविद्यालय भी पहुंच गए जहां से ये कम्युनिस्ट पढ़कर निकले/पढ़ रहे थे। वहां जाकर जब वो तीनों उन नए कम्युनिस्ट विचारकों से मिले और देश को तोड़ने और आजादी सरीखे मुद्दों पर उनसे बात की तो नए विचारकों ने थोड़ी ही देर में इन तीनों को भक्त घोषित कर दिया।
भगत सिंह ने कहा- यारा सुखदेव हम तो अपने जमाने में कम से कम दूसरों की सुनते तो थे। भले हम गांधी जी और कांग्रेस के विचारों-तरीकों से असहमत थे लेकिन उनकी बात सुनकर सहमति-असहमति का फैसला करते थे। कभी किसी से बहस से पीछे नहीं हटे ना ही किसी विचारधारा को ऐसे ही नकार दिया। राजगुरू पट से बोल पड़े- अब हम क्या ही कहें, हम तो जिनके लिए मरे। जिनका भविष्य सोचा उन्होंने ही हमें भक्त घोषित कर दिया। ना विचार सुना, ना तरीके को गुना, सीधा हमें भक्त करार दे दिया। वैसे ये भक्त होता क्या है? वो तीनों इसी उधेड़बुन में थे कि मेरी नींद टूटी और मेरी निगाह सीधे अपने बिस्तर के सिरहाने लगे भगत सिंह के पोस्टर्स पर गई जो खाली हो चुके थे! मानों भगत ने इस देश में रहने से इनकार कर दिया हो।
महापंडित राहुल सांकृत्यायन के सहयोग से