Thursday 30 April 2015

भारतीय फुटबॉल का छोटा सा इतिहास। भाग -2

राष्ट्रीय फुटबॉल लीग की स्थापना
भारतीय फुटबॉल जगत को 1996 में बड़ा उछाल मिला जब ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन ने राष्ट्रीय फुटबॉल लीग की स्थापना की । यह भारत की पहली राष्ट्रीय घरेलू लीग थी। इसका पहला खिताब जेसीटी क्लब ने जीता था। इस लीग को खास सफलता ना मिलते देख सन् 2007 में इसका पुनर्गठन आई-लीग के नाम से किया गया और इसे दो डिवीजन में बांट दिया गया।
आई-लीग और आई-लीग2 । हर साल आई-लीग में सबसे नीचे की दो टीमें रेलीगेट होकर आई-लीग-2 में चली जाती हैं और वहां की दो टॉप टीमें आई-लीग में आ जाती हैं। पहली आई-लीग डेम्पो स्पोर्टिंग क्लब ने जीती थी। सबसे ज्यादा बार आई- लीग का खिताब भी डेम्पो ने ही जीता है। डेम्पो ने दो बार एनएफएल(नेशनल फुटबॉल लीग) और तीन बार आई-लीग का खिताब अपने नाम किया है। इस लिस्ट में डेम्पो के बाद मोहन बागान का नाम आता है जिसने एनएफएल का खिताब तीन बार जीता है। लीग के अब तक के इतिहास में किसी भी टीम ने लगातार तीन बार खिताब नहीं जीता है। हालांकि ईस्ट बंगाल और डेम्पो इसे लगातार दो-दो बार जीत चुके हैं। ईस्ट बंगाल के नाम इस लीग में सबसे ज्यादा जीत(194) के साथ ही लगातार 22 मैचों तक अजेय रहने का रिकॉर्ड भी है। तो वहीं मोहन बागान के नाम लगातार 10 जीत का रिकॉर्ड है और चर्चिल ब्रदर्स ने लीग के इतिहास में सबसे ज्यादा 623 गोल किये हैं।
आई- लीग के गोल तथा अन्य व्यक्तिगत रिकॉर्ड

सबसे ज्यादा गोल                            -       रैंटी मार्टिन्स 185 गोल
एक सीजन में सबसे ज्यादा गोल          -        रैंटी मार्टिन्स 32 गोल(डेम्पो के लिये 2011-12में)
एक मैच में सबसे ज्यादा गोल              -        रैंटी मार्टिन्स (डेम्पो)7 गोल एयर इंडिया के खिलाफ
एक एडिशन में सबसे ज्यादा टीम गोल   -        डेम्पो (63) 2010-11 सीजन में
सबसे ज्यादा अंतर से जीत                   -        डेम्पो 14-0 एयर इंडिया के खिलाफ
एक साल में सबसे ज्यादा अंक लेकर जीत-       डेम्पो 57 अंक 2011-12 सीजन में



20वीं शताब्दी में भारतीय फुटबॉल
भारतीय टीम सन् 2004 के एशियन कप के लिये क्वालीफाई करने में नाकाम रही लेकिन इस नाकामी से उबरते हुये भारत ने पहले एफ्रो एशियन गेम्स का रजत पदक जीता। इस टूर्नामेंट में भारत ने अपने से बहुत ऊंची रैंकिंग वाली रवांडा और जिम्बाब्वे जैसी टीमों को हराया। हालांकि फाइनल में वो उज्बेकिस्तान से 1-0 से हार गये। इस प्रदर्शन के बाद भारतीय टीम को देश के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत प्रशंसा मिली। नवंबर 2003 में भारतीय टीम के तात्कालिक कोच स्टीफेन कॉन्सटैंटाइन को एएफसी मैनेजर ऑफ द मन्थ का पुरस्कार भी मिला।
2003 के सैफ कप में भारतीय टीम को पाकिस्तान और बांग्लादेश से हार का सामना करना पड़ा। इस हार के साथ ही भारत 2006 के फीफा विश्व कप के क्वालीफायर्स मुकाबले में भी हार गया जिसके चलते कोच स्टीफेन को अपना पद छोड़ना पड़ा। स्टीफेन के कोचिंग दौर में भारत द्वारा वियतनाम में आयोजित एलजी कप को जीतना एक बड़ी सफलता थी। 1974 के बाद से ये उपमहाद्वीप के बाहर भारत की पहली जीत थी। इस मैच में भारत ने पहले तीस मिनट में 2-0 से पिछड़ने का बाद वियतनाम को 3-2 से हराकर खिताब जीता था।
सन् 2005 में सैयद नइमुद्दीन को भारतीय फुटबाल टीम का कोच नियुक्त किया गयालेकिन 2007 में एएफसी एशियन कप के लिये आयोजित क्वालिफायर में भारत को मिली करारी हार के बाद उन्हें हटा दिया गयाजिसके बाद 2006 में बॉब हॉटन को कोच नियुक्त किया गया।
भारतीय फुटबॉल में बॉब हॉटन का युग
जून 2006 में जब बॉब हॉटन को भारतीय फुटबॉल टीम का कोच नियुक्त किया गया था तब उनकी पहचान स्वीडिश फुटबॉल में क्रांति लाने वाले व्यक्ति के रूप में थी। इंग्लिश फुटबॉल टीम के मौजूदा कोच रॉय हडसन के साथ मिलकर हटन ने ही सबसे पहले स्वीडिश फुटबॉल में जोनल मार्किग शुरू करने के साथ ही लंबे पासों के जरिये काउंटर अटैक के नियम को बरकरार रखा था। लेकिन वो स्वीडन था, एक ऐसा देश जहां पर ढ़ांचागत सुविधाएं और अकादमिक जागरुकता थी। ऐसी जगह काम करने के बाद हटन का अगला कार्यकाल था भारत में, जहां पर ढ़ांचागत सुविधाओं का अभाव होने के साथ ही निचले स्तर पर युवाओं के लिये अकादमियों का भी अभाव था। किसी भी स्तर के कोच के लिये खिलाड़ियों का भरोसा ही सफलता का आधार है। अपने पांच साल के कार्यकाल में बॉब ने खिलाड़ियों का भरोसा जीतने के साथ ही अभूतपूर्व सफलताओं भी अर्जित की। इस सफलता के पीछे सबसे बड़ा कारण था बॉब का अपने खिलाड़ियों पर अच्छे और बुरे दोनों वक्त में भरोसा रखना। सुब्रतो पॉल के रूप में बॉब के भरोसे का एक बड़ा उदाहरण हमारे सामने है। सोदपुर (बंगाल) के रहने वाले सुब्रतो 2008-09 के सीजन में जब ईस्ट बंगाल के साथ खेलते हुये अपनी सबसे बुरी फॉर्म से गुजर रहे थे उस वक्त भी हॉटन का कहना था कि सुब्रतो देश के नंबर एक गोलकीपर हैं। और सुब्रतो ने हॉटन के भरोसे पर खरा उतरते हुये 2009 के नेहरू कप के फाइनल में मैच जिताऊ प्रदर्शन करते हुये उस साल एआईएफएफ प्लेयर ऑफ द इयर का अवार्ड भी जीता। ऐसे बहुत से अन्य उदाहरण भी हैं जब क्लब लेवल पर बुरे दौर से गुजर रहे खिलाड़ियों पर बॉब ने भरोसा जताया और उन्होंने अपने प्रदर्शन से बॉब के भरोसे को टूटने नहीं दिया। अंतरराष्ट्रीय मित्रतापूर्ण मैचों में मिली पराजयों से प्रभावित ना होते हुये हॉटन ने उन्हीं खिलाड़ियों को एशियन कप के लिये टीम में रखा और टीम इंडिया ने 2011 में कतर में जांबाज प्रदर्शन किया। ज्यादातर मामलों में हम देखते हैं कि क्लब लेवल पर स्टार्स का जन्म होता है, क्लब स्टार्स बनाते हैं लेकिन हॉटन के मामले में ऐसा नहीं था सुब्रतो पॉल,सुनील छेत्री और गौरमांगी सिंह जैसे कई नाम हैं जो हटन की देख-रेख में स्टार बने और अपने खेल से देश को गौरवांगित किया। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिये कि वो बॉब हॉटन ही थे जिन्होंने भारतीय फुटबॉल के प्रतीक बन चुके बाइचुंग भूटिया को कुछ और साल खेलने के लिये राजी किया था। जैसे हॉटन को अपने खिलाड़ियों पर भरोसा था ठीक उसी प्रकार खिलाड़ी भी हटन की बहुत इज्जत करते थे और हमेशा उनके समर्थन में खड़े रहते थे।
बॉब हॉटन के कार्यकाल में भारतीय टीम ने दो बार नेहरू कप में भाग लिया और दोनों बार इस कप को जीता। हालांकि आलोचकों का कहना है कि उस दौर में नेहरू कप में पहले जैसी कड़ी प्रतियोगिता नहीं रह गई थी लेकिन एक टीम जो लगातार बुरा प्रदर्शन कर रही हो उसके लिये इतने प्रतिष्ठित टूर्नामेंट को जीतना बड़ी बात है।  दोनों बार नेहरू कप जीतने से टीम में जीतने की इच्छाशक्ति तो आई ही साथ ही साथ नेपथ्य में पड़े बहुत से खिलाड़ी भी सामने आये और उन्होंने अपने खेल से सबको प्रभावित किया।  2007 में हुये पहले नेहरू कप में भारत के अलावा कंबोडिया,बांग्लादेश कजाकिस्तान और सीरिया ने भाग लिया। इन सारी टीमों में सीरिया इकलौती टीम थी जो फीफा रैंकिंग में भारत से ऊपर थी, जिसे देखते हुये बॉब की टीम से कम से कम फाइनल में पहुंचने की उम्मीद सभी को थी। भारत ने अपने सफर की शुरुआत कंबोडिया को 6-0 से रौदते हुये की और अगले ही मैच में बांग्लादेश को 1-0 से हराया। हालांकि अपने अगले मैच में भारतीय टीम सीरिया से कड़े मुकाबले में 3-2 से हार गई लेकिन अगले ही मैच में टीम इंडिया ने कजाकिस्तान को 3-0 से हराकर फाइनल में अपनी जगह बना ली। फाइनल में उसका मुकाबला सीरिया से था जिसमें एनपी प्रदीप के पहले हाफ में किये गोल की बदौलत टीम इंडिया ने सीरिया को 1-0 से हराकर पहली बार नेहरू कप का खिताब अपने नाम किया।

बॉब हटन की कोचिंग में टीम इंडिया की यह पहली खिताबी जीत थी। उसके बाद सन् 2008 में भारत ने तजाकिस्तान को 4-1 से हरा कर एफसी चैलेन्ज कप जीता,
जिसके बाद वो 2011 में आयोजित होने वाले एएफसी एशियन कप के लिए क्वालीफाईड टीम में शामिल हो गयी। 2009 के नेहरू कप का फॉर्मेट भी पिछली बार की ही तरह राउंड रॉबिन था लेकिन इस बार टूर्नामेंट में कंबोडिया और बांग्लादेश की जगह श्रीलंका और लेबनॉन ने ली थी। टूर्नामेंट में भारत की शुरुआत किसी बुरे सपने की तरह थी जब उसे पहले ही मैच में लेबनॉन से 1-0 से पराजय झेलनी पड़ी। अगले मैच में बॉब हॉटन की टीम ने कजाकिस्तान को 2-1 से हराकर अपने अभियान को पटरी पर लाने की शुरुआत की और अगले ही मैच में श्रीलंका को 3-1 से हराकर फाइनल में पहुंच गया। फाइनल में जगह पक्की होने के कारण आखिरी राउंड रॉबिन मैच में भारतीय कोच हॉटन ने टीम से रेगुलर खिलाड़ियों को आराम दिया और भारतीय टीम सीरिया से ये मैच 1-0 से गंवा बैठी। फाइनल में भारत का मुकाबला सीरिया से ही था। मैच के 90 मिनट तक कोई भी टीम गोल नहीं कर पाई लेकिन एक्स्ट्रा टाइम में रेनेडी सिंह ने शानदार फ्रीकिक पर गोल दागकर भारत को बढ़त दिला दी। हालांकि एक्स्ट्रा टाइम के खत्म होते होते सीरिया के डिफेंडर अली डियाब ने गोल दागकर मैच को फिरसे बराबरी पर ला खड़ा किया। जिसके बाद मैच का फैसला पेनाल्टी शूटआउट में हुआ और शूटआउट में भारतीय गोली सुब्रतो पॉल के शानदार प्रदर्शन के बलबूते भारत ने पेनाल्टी शूटआउट में मैच को 5-4 से जीत लिया, सुब्रतो ने इस मैच में तीन पेनाल्टी किक्स रोकी। और इसी के साथ भारत लगातार दूसरी बार नेहरू कप का विजेता बन गया।
बॉब हॉटन के कार्यकाल की सबसे बड़ी खूबी थी युवाओं को मौके देना। हॉटन ने ही सीनियर टीम में सुब्रतो पॉल,गौरमांगी सिंह, अनवर अली और सुनील छेत्री जैसे युवाओं को मौका दिया और आज यही खिलाड़ी टीम के आधारस्तंभ बने हुये हैं। टीम के भविष्य में विभिन्न आयु वर्ग के खिलाड़ियों की अहमियत को समझते हुये हटन ने एआईएफएफ को 2009 के सैफ कप के लिये अंडर-23 टीम को भेजने की सलाह दी और हॉटन की सलाह पर भेजी गई टीम ने बांग्लादेश में आयोजित सैफ कप को जीतकर उनके फैसले को सही साबित किया। भारतीय टीम ने फाइनल में गत विजेता मालदीव को पेनाल्टी शूटआउट में हराकर खिताब पर कब्जा जमाया। यहां तक कि 2010 एएफसी चैलेंज कप में भी भारतीय अंडर-23 टीम ने भाग लिया हालांकि वो ग्रुप स्टेज से ही बाहर हो गये लेकिन उस टीम के कई सदस्यों के दम पर भारतीय सीनियर टीम एशियन गेम्स के अंतिम 16 तक पहुंचने में कामयाब रही। भारतीय फुटबाल के लिए 2011 का साल एक नई शुरूआत साबित हुआ। साल की शुरूआत में भारतीय टीम ने 27 सालों में पहली बार एएफसी एशियन टूर्नामेंट में हिस्सा लिया। इस मैच में भारत ऑस्ट्रेलियाबहरीन और साउथ कोरिया के साथ ग्रुप सी में था। इस मैच में भारत ने पहला मैच ऑस्ट्रेलिया से खेला थाजिसमें उसे 4-0 से हार मिली। फिर बहरीन से हुए मैच में भी भारतीय टीम को 5-2 से हार का सामना करना पड़ा। इस मैच में सुनील छेत्री और गौरामंगी सिंह ने क्रमशः एक-एक गोल किये।  साउथ कोरिया के साथ अपने फाइनल मैच में भारतीय टीम 4-1 से हार गयीइस मैच में भी सुनील छेत्री ने एकमात्र गोल किया। भारत ने अपने तीन मैचों में कुल 3 गोल किएजिसमें 2 गोल सुनील छेत्री ने किया।
एशियन कप के बाद एआईएफएफ ने  टीम पर काफी मेहनत की। 2012 के एएफसी चैलेन्ज कप के क्वालीफायर मैच में भारत ने चीनी ताइपेपाकिस्तान को हरा कर ग्रुप में बढ़त बना ली। जहां चीनी ताइपे को भारत ने 3-0 से हराया वहीं पाकिस्तान को 3-1 से हराया। क्वालीफायर के तीसरे मैच में भारत ने तुर्कमेनिस्तान से 1-1 से ड्रा खेला। तीनों मैचो में भारत की ओर से 7 गोल दागे गए जिसमें सबसे ज्यादा 3 गोल लाल पेखलुआ ने किया।
अप्रैल 2011 में कोच बॉब हॉटन ने वियतनाम के खिलाफ एक मैच के दौरान एक भारतीय रेफरी से रंगभेदी अभद्रता करने का आरोप लगने के बाद इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद मई 2011 में एआईएफएफ  ने अरमैण्डो कोलैको को कोच नियुक्त किया गया।

भारतीय फुटबॉल का नया युग :आईएसएल की शुरुआत
परिचय
इंडियन सुपर लीग जिसका टाइटल प्रायोजक हीरो मोटोकॉर्प है, और इसी वजह से उसे हीरो इंडियन सॉकर लीग के नाम से जाना जाता है,  भारत की प्रोफेशनल फुटबॉल लीग है। यह आई- लीग की तरह ही भारत की प्रमुख राष्ट्रीय लीग है। इसमें पूरे भारत से आठ टीमें भाग लेती हैं। यह लीग अक्टूबर से दिसंबर के बीच में चलती है। भारतीय खेल जगत में फुटबॉल को प्रमुख स्थान दिलाने तथा भारतीय फुटबॉल खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिये सन् 2013 में इस लीग की स्थापना की गई थी। यह लीग भारत की टी20 क्रिकेट लीग आईपीएल तथा अमेरिका की फुटबॉल लीग मेजर सॉकर लीग की तर्ज पर चलती है। विश्व की दूसरी फुटबॉल लीग की तरह इसमें प्रमोशन और रेलीगेशन जैसी व्यवस्था की जगह फ्रेंचाइजी सिस्टम के तहत आठ टीमों की स्थापना की गई है। जो इस लीग में खेलती हैं। इस लीग का पहला सीजन 12 अक्टूबर 2014 से लेकर 20 दिसम्बर 2014 तक चला था। जिसमें एटलेटिको डि कोलकाता ने केरला ब्लास्टर्स को हराकर पहला आईएसएल खिताब अपने नाम किया था।



इतिहास
9 दिसंबर 2010 को ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन ने रिलायंस इडंस्ट्रीज तथा अमेरिकी कंपनी द इंटरनेशनल मैनेजमेंट ग्रुप के साथ 15 साल के लिये 700 करोड़ रुपयों का समझौता किया था। इस समझौते से आईएमजी-रिलायंस को सारे व्यावसायिक अधिकार जैसे- प्रायोजक,विज्ञापन,प्रसारण, साजो-सामान,वीडियो,फ्रेंचाइजी तथा एक नई फुटबॉल लीग की स्थापना मिल गये थे। यह समझौता एआईएफएफ तथा जी स्पोर्ट्स के बीच 10 साल के करार के पांच साल पहले ही (अक्टूबर 2010 में) खत्म हो जाने के बाद हुआ था।
इंडियन प्रीमियर लीग की सबसे पहली अफवाह उस वक्त उड़ी थी जब आई-लीग क्लब के मालिकों तथा एआईएफएफ के बीच संवादहीनता के कारण तनातनी की स्थिति बन गई थी। अफवाहों के मुताबिक आईएमजी-रिलायंस ने आईपीएल तथा अमेरिकी एमएलएस की तर्ज पर आई-लीग के पुनर्गठन की योजना बनाई थी।
25 अप्रैल 2011 को आईपीएल के जैसी पहली फुटबॉल लीग का अनावरण हुआ जब पश्चिम बंगाल की इंडियन फुटबॉल एसोसिएशन ने बंगाल प्रीमियर लीग सॉकर नाम की प्रतियोगिता शुरू की। फैबियो कैन्नावारो,रॉबी फॉउलर, हर्नान क्रेस्पो और रॉबर्ट पाइरेस जैसे बड़े खिलाड़ियों के साथ इस प्रतियोगिता का पहला सीजन 2012 में होना तय हुआ था। लेकिन फरवरी 2012 में इस सीजन को आगे खिसका दिया गया और फिर सन् 2013 में आर्थिक दिक्कतों के चलते लीग को रद्द कर दिया गया।
बंगाल प्रीमियर लीग सॉकर की विफलता के बावजूद एआईएफएफ ने आईएमजी-रिलायंस के आईपीएल की तर्ज पर सन् 2014 में एक और फुटबॉल लीग शुरू करने के प्रस्ताव को इस शर्त पर मंजूरी दे दी कि ये लीग पूरे भारत के स्तर पर होगी।  आई-लीग के मालिकों ने एआईएफएफ के इस फैसले का कड़ा विरोध करते हुये द इंडियन प्रोफेशनल फुटबॉल क्लब्स एसोसिएशन बना ली। जिसके अंतर्गत उन्होंने अपने खिलाड़ियों को आईएमजी-रिलायंस को देने तथा उनसे जुड़े खिलाड़ियों को अपने साथ जोड़ने से मना कर दिया। हालांकि अगस्त 2013 में पता चला कि आईएमजी-रिलायंस ने अपनी जरूरत भर के भारतीय खिलाड़ियों को पहले ही साइन कर लिया था।
तमाम गतिरोधों के बीच 21 अक्टूबर 2013 को आईएमजी-रिलायंस,स्टार स्पोर्ट्स तथा एआईएफएफ ने आधिकारिक रूप से आईएसएल को लांच कर दिया। जिसके खेले जाने की अवधि उन्होंने जनवरी 2014 से मार्च 2014 तय की थी। बाद में 29 अक्टूबर 2013 को आईएसएल को सितंबर तक के लिये आगे बढ़ा दिया गया। अक्टूबर में ही मशहूर इंग्लिश क्लब मैनचेस्टर यूनाइटेड के लिये खेल चुके फ्रेंच स्टार लुईस साहा के रूप में आईएसएल को अपना पहला मार्की खिलाड़ी मिला।
आईएसएल की आठ टीमें तथा उनके मालिक
टीम                                                                          मालिक
एटलेटिको डि कोलकाता
सौरव गांगुली, एटलेटिको डि मैड्रिड हर्षवर्धन नेवतिया, संजीव गोयनका तथा उत्सव पारेख
मुंबई सिटी एफसी
रणबीर कपूर तथा बिमल पारेख
नॉर्थ ईस्ट यूनाइटेड एफसी
जॉन अब्राहम तथा शिलॉंग लजॉंग एफसी
एफसी पुणे सिटी
सलमान खान तथा वाधवान ग्रुप
देल्ही डायनमोज एफसी
डेन नेटवर्क
चेन्नइयन एफसी
अभिषेक बच्चन, महेंद्र सिंह धोनी तथा विता दानी
केरला ब्लास्टर्स
सचिन तेंदुलकर तथा प्रसाद वी पोत्लुरी
एफसी गोवा
विडियोकॉन ग्रुप, दत्तराज सालगांवकर तथा श्रीनिवास डेम्पो