वो
बड़ी खूबसूरत थी जब भी उसे देखता था तो दिल अटक ही जाता था। अक्सर दिख ही जाती थी
वो कॉलेज आते जाते और जब भी दिखती थी दिल उछल कर बाहर ही आना चाहता था जैसे। बड़ी
प्यारी लगती थी वो, और लगना क्या थी ही बड़ी प्यारी। देखते तो उसे हमेशा थे और
देखने के बाद लगता था कि सुबह- सुबह जागना और ठंडे पानी से नहाना सफल हो गया।
यूं
ही हमारी आशिकी आगे-आगे और पढ़ाई जाने कहां पीछे-पीछे आती ही रही, और महीने बीतते
गये, एक दिन देखा उसे तो थोड़ी अपसेट सी लगी लेकिन कभी बात तो हुई नहीं थी इसलिये
टोकने की हिम्मत नहीं हुई। काफी कोशिशों के बाद थोड़ा सा पता चला कि किसी लड़के ने
शायद कुछ कहा है।
खोजी
पत्रकारिता के पहले सोपान को पार करते हुये डिटेल खोदी तो पता चला कि कहा सुनी
नहीं है ये तो छेड़छाड़ का मामला था। लड़के ने जानबूझ कर उसे गलत तरीके से छुआ था।
ये सुनकर बड़ा गुस्सा आया और सोचा कि सर तोड़ दें साले का।
लेकिन
फिर सबने समझाया कि पहले कंप्लेन कर के देख लो। पहली बार उससे इस सिलसिले में बात
होगी कभी सोचा नहीं था। मेरे बोलने पर वो तैयार हुई और फिर कॉलेज के वूमेन्स सेल
में शिकायत की गई। फिर शुरू हुआ तारीख पर तारीख का सिलसिला।
हर तारीख पर उसे परेशानी के अलावा और कुछ नहीं मिला। ऐसे-ऐसे
सवाल किये जाते थे कि लिखना मुश्किल है। फिर एक दिन सुनवाई के दौरान सेल की
अध्यक्ष ने उससे केस वापस लेने की सलाह देते हुये कहा कि छेड़छाड़ साबित नहीं हो पायेगी
क्योंकि कोई गवाह नहीं है।
इन
सब बातों से वो इतनी परेशान हुई कि उसे काउंसलर की मदद लेनी पड़ी। काफी काउंसिलिंग
के बाद वो ठीक हुई और फिर कॉलेज वापस आई। लेकिन आने के बाद वो वैसी नहीं रह गई, बिल्कुल
डरी-सहमी और अपने में खोई रहने वाली बन गई। ऐसे किसी हादसे के चलते अपनी जिंदगी
जीना भूल जाने वाली ये कोई पहली या आखिरी लड़की नहीं है।
बल्कि रोज हजारों लड़कियां ऐसे ही किसी कारण के
चलते स्कूल, कॉलेज छोड़ने के लिये मजबूर हो जाती हैं। हर बार अपराधी बच निकलता है,
कभी लोक-लोज का भय तो कभी, मामला साबित ना कर पाने डर।
ऐसा नहीं है
कि इन बढ़ते अपराधों के पीछे कानून का ढ़ीला होना या फिर कमजोर होना जिम्मेदार है।
बल्कि देखने वाली बात तो ये है कि कानून की सख्ती जैसे जैसे बढ़ रही है महिलाओं के
प्रति दुर्व्यवहार भी बढ़ रहे हैं। फिर चाहे वो स्कूल कॉलेजों में, सड़कों पर ,कार्यालयों
में और यहां तक कि घरों तक में रोज हो रही शारीरिक छेड़छाड़।
आखिर
क्या वजह है कि ऐसे मामले लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं और धीरे धीरे समाज उनको
स्वीकार भी कर ले रहा है। छेड़छाड़ की शिकायत करने अगर लड़के के घर जाओ तो अक्सर
ये बात सुनने में आती है कि लड़का है तो लड़की तो छेड़ेगा ही।
अब
सवाल ये है कि ऐसी मानसिकता आखिर क्यों है। क्या इसके लिये समाज का पुरुषवादी होना
जिम्मेदार है या फिर महिलाओं को भोग की वस्तु समझने की सोच?
इस
पर लंबी बहस हो सकती है। लेकिन सवाल तो ये है कि भारत जहां नदियों को भी मां माना
जाता है और नारियों की पूजा की जाती है। वहां ऐसे हालात आखिर क्यों हैं।