Tuesday 19 May 2015

मैजिकल मेसी की बदौलत बार्सिलोना बना ला-लीगा चैंपियन



स्पेनिश फुटबॉल लीग जिसे ला-लीगा के नाम से जाना जाता है के 2014-15 सीजन के अपने 37वें मैच में मौजूदा विजेता एटलेटिको मैड्रिड को 1-0 से हराकर बार्सिलोना ने एक मैच शेष रहते ही सीजन का खिताब अपने नाम कर लिया। मजे की बात ये है कि पिछले साल एटलेटिको ने बार्सिलोना को उसके घरेलू मैदान पर हराकर खिताब जीता था तो वहीं इस साल बार्सिलोना ने एटलेटिको को उसी के घर में मात देकर खिताब भी जीत लिया और अपना बदला भी पूरा कर लिया। यह बार्सिलोना का कुल 23वां तथा पिछले 7 सालों में 5वां ला-लीगा खिताब है। बार्सिलोना के ला-लीगा चैंपियन बनने में बड़ा योगदान MSN यानि कि मेसी, सुआरेज़ और नेमार का रहा जिन्होंने इस साल ला-लीगा में बार्सिलोना द्वारा किये गये 108गोलों में से 79 गोल अपने नाम किये। इस प्रदर्शन के दम पर इन्होंने बार्सिलोना के लिये 2008-09 सीजन में मेसी,थिएरे हेनरी और सैमुएल एटो के एक सत्र में सर्वाधिक गोलों के रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया। जबकि इस साल के सभी कंपटीशनों को मिला दिया जाये तो MSN के गोलों की संख्या 115 पहुंच जाती है जो कि बार्सिलोना के लिये एक साल में सर्वश्रेष्ठ है। इस पूरे सीजन में बार्सिलोना का प्रदर्शन काबिलेतारीफ रहा और उन्होंने अटैक, डिफेंस और मिडफील्ड हर तरफ अपने प्रदर्शन से लोगों को अभीभूत कर दिया। यह जीत इसलिये भी खास है क्योंकि सालों से बार्का मिडफील्ड की जान बने रहे ज़ावी और इनिएस्ता इस साल सिर्फ चार बार एक साथ किसी मैच की शुरुआती एकादश में जगह बना पाये। मैनेजर लुईस एनरीके ने शुरुआती टीम में इनकी जगह पर सर्जियो बस्केट और इवान रैकिटिच को मौका दिया और इन्होंने इस मौके को भुनाते हुये पूरे सीजन में जबरदस्त खेल दिखाया, खासतौर से रैकिटिच ने तो अपने खेल से इनकी कमी महसूस नहीं होने दी। अगर डिफेंस की बात करें तो जहां जेवियर मस्करानो और जेरेमी मैथिऊ के अलावा गेरार्ड पिके ने भी जबरदस्त खेल दिखाया जबकि थॉमस वरमलीन का पूरा सीजन चोटिल रहते ही बीत गया(हालांकि सीजन के आखिरी मैच में उनके खेलने की संभावना है)। वहीं जॉर्डी अल्बा और दानी अलावेस ने लेफ्ट बैक और राइट बैक पोजीशन पर अपनी स्पीड और एबिलिटी से टीम को गतिमान रखने में मदद की। बात अगर गोलकीपिंग की करें तो चिली के क्लाउडियो ब्रावो ने ला-लीगा के 37 मैचों में 23 क्लीन शीट अर्जित कीं। ब्रावो ने इन मैचों में सिर्फ 19 गोल खाये और 74 गोल्स बचाये। बार्सिलोना ने इस सीजन के 37 मैचों में 11 बार विपक्षी टीम को पांच या उससे ज्यादा गोलों से मात दी। बार्सिलोना के 12 खिलाड़ियों नेमार, क्लाउडियो ब्रावो, लुईस सुआरेज़, जेरेमी मैथिऊ, इवान रैकिटिच, रफिन्हा, डगलस, टेर स्टेगन, मुनीर अल हदादी, सान्ड्रो, मैसिप और थॉमस वरमलीन के लिये बार्सिलोना के साथ यह पहला ला-लीगा खिताब है।

एक मैच शेष रहते बार्सिलोना द्वारा 93 अंकों के साथ खिताब जीतने के बाद बार्का तथा उससे चार अंक पीछे रियाल मैड्रिड चैंपियंस लीग के लिये क्वालीफाई कर गये हैं। जबकि 77 अंकों के साथ तीसरे स्थान वाली एटलेटिको मैड्रिड तथा 74 अंकों के साथ चौथे स्थान पर मौजूद वेलेंसिया में से कौन सीधे क्वालीफाई करेगा तथा किसे क्वालीफायर्स से गुजरना पड़ेगा इसका फैसला दोनों टीमों के आखिरी मैच के नतीजों से होगा। जबकि अगर वैलेंसिया अपना आखिरी मैच हार जाती है और पांचवे स्थान पर मौजूद सैविला अपना आखिरी मैच जीत लेती है तो सैविला चैंपियंस लीग के क्वालीफायर मुकाबले खेलने के लिये क्वालीफाई कर जायेगी जबकि वैलेंसिया को विल्लार्रियल के साथ यूरोपा लीग में खेलना पड़ेगा।

Monday 4 May 2015

कहानी लीजेंड मोहम्मद सलीम की

दोस्तों आज की हमारी कहानी है एक ऐसे खिलाड़ी की जो सन् 1904 में कोलकाता के मेटियाबुरुज नाम की एक छोटी सी जगह के एक बहुत ही गरीब खानदान में पैदा हुआ था। वहां से निकल कर उसने अपने खेल के दम पर स्कॉटलैंड तक का सफर तय किया। और दुनिया उसे आज यूरोप मे खेलने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी के रूप में जानती है।
1920-30 का दौर था भारत के लोग अंग्रेजों को देश से भगाने के लिये हर कोशिश कर रहे थे। उसी दौर में देश के कुछ इलाकों, खासकर बंगाल के लोगों ने फुटबॉल को अंग्रेजों के खिलाफ एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू किया। वो नंगे पैर फुटबॉल खेलते थे और बूट पहनकर खेलने वाले अंग्रेजों को हराकर उन्हें ये एहसास दिलाते थे कि भारतीय लोग राज करना जानते हैं। क्योंकि अंग्रेजों का कहना था कि अभी भारत के लोग इतने काबिल नहीं हुये हैं कि राज कर सकें।
उस दौर में मोहम्मद सलीम भारत के सबसे बेहतरीन युवा फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में उभरे। उनके खेल को देखते हुये उन्हें बाऊबाजार के मशहूर चितरंजन क्लब ने अपने साथ जोड़ लिया। इनके साथ खेलते हुये सलीम ने शानदार खेल दिखाया जिसके चलते मोहम्मडन की बी टीम ने उन्हें अपने साथ जोड़ने में जरा भी देर नहीं लगाई।
लेकिन यहां करियर को कोई खास फायदा ना होते देखकर सलीम ने उस वक्त के बंगाल के मशहूर खेल एडमिनिस्ट्रेटर पंकज गुप्ता के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुये उनकी टीम स्पोर्टिंग यूनियन को ज्वाइन कर लिया। जहां से ईस्ट बंगाल और आर्यन्स क्लब होते हुये वो 1934 में मोहम्मडन स्पोर्टिंग की सीनियर टीम में आये और फिर शुरू हुआ सलीम के खेल का सबसे बेहतरीन वक्त।
देश के सबसे पुराने फुटबॉल क्लबों में से एक मोहम्मडन स्पोर्टिंग क्लब नाम के लिये सलीम फॉरवर्ड और मिडफील्ड दोनों पोजीशन पर खेलते थे(बिल्कुल रोनाल्डो और मेसी की तरह)। सलीम के खेल के दम पर मोहम्मडन स्पोर्टिंग ने 1934 से लेकर 1938 तक लगातार 5 बार कलकत्ता फुटबॉल लीग का खिताब अपने नाम किया।
1936 की खिताबी जीत में सलीम के योगदान को देखते हुये उन्हें भारत में आयोजित पहले अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल मैच में खेलने के लिये आमंत्रित किया गया। जिसमें भारत की दो टीमें- ऑल इंडिया इलेवन और मिलिट्री तथा सिविलियन्स को मिलाकर बनी टीम को चीन की ओलम्पिक टीम के साथ दो मैच खेलने थे।
पहले मैच में सलीम के खेल को देखकर चीनी अधिकारियों ने उनकी खूब प्रशंसा की। उनके खेल को देखते हुये सेना और पुलिस ने उन्हें अपनी टीम में शामिल करने की कोशिश की लेकिन सलीम तो गायब हो चुके थे। पुलिस ने सलीम को खोजने की बहुत कोशिश की, यहां तक कि अखबारों में विज्ञापन भी दिये गये। लेकिन सलीम तो निकल चुके थे । वो इंग्लैंड में रहने वाले अपने एक रिश्तेदार हशीम के साथ मिस्र की राजधानी कायरो के रास्ते लंदन की तरफ निकल पड़े। लंदन में कुछ दिन बिताने के बाद उन्होंने हशीम के कहने पर स्कॉटलैंड के सबसे बड़े और मशहूर क्लब सेल्टिक के लिये ऑडिशन देने का फैसला किया।
सेल्टिक के मैनेजर विली मैले ने पहले तो नंगे पैर खेलने वाले भारतीय खिलाड़ी को लेने में हिचकिचाहट दिखाई लेकिन हशीम के जोर डालने पर वो ऑडिशन के लिये तैयार हो गये। और उन्होंने सलीम से क्लब के 1000 सदस्यों और तीन कोचों के सामने ऑडिशन देने के लिये कहा।
सलीम ने ऑडिशन में गेंद को कंट्रोल करने की अपनी क्षमता और खेल से सभी को प्रभावित कर दिया। उन्होंने टीम के साथ दो फ्रेंडली मैच खेले जिनमें उन्होंने इतना धमाकेदार प्रदर्शन किया किया कि वहां के मशहूर अखबार स्कॉटिश डेली एक्सप्रेस ने अपने उस दिन के अखबार में इंडियन जगलर न्यू स्टाइल हेडिंग के साथ इनकी तारीफ में लंबा आर्टिकल लिखा। और इस तरह वो किसी यूरोपियन लीग मे खेलने वाले भारतीय उपमहाद्वीप के पहले खिलाड़ी बन गये।
लेकिन ये जादूगर सेल्टिक के लिये प्रतिस्पर्धी मैच नहीं खेल पाया क्योंकि उनकी तबीयत खराब होने लगी और उन्होंने घर वापस आने के लिये क्लब के मैनेजर से कहा। हालांकि उन लोगों ने सलीम को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन जब सलीम नहीं माने तो क्लब ने उनके सम्मान में एक प्रदर्शनी मैच कराने और मैच की टिकटों के जरिये कुल कमाई का 5 प्रतिशत उन्हें देने की बात कही। लेकिन सलीम ने पैसे लेने से इनकार करते हुये उसे मैच देखने आये अनाथ लोगों में बंटवा दिया।
उस वक्त ये रकम 1800 यूरो यानि लगभग 12 लाख रुपये थी। दोस्तों सोचो जरा उस वक्त इतने रुपयों से क्या कुछ नहीं किया जा सकता था, लेकिन हमारे सलीम ने जरा भी लालच ना करते हुये वो रकम अनाथों में बंटवा दी और घर चले आये।
वापस आते वक्त उन्हें जर्मन लीग में खेलने का भी ऑफर मिला था लेकिन उन्होंने भारत वापस आकर फिर से मोहम्मडन स्पोर्टिंग क्लब ज्वाइन किया। और अगले दो सालों तक उन्हें फिर से कलकत्ता फुटबॉल लीग का चैंपियन बनाया।
काफी सालों बाद जब एक बार सलीम बीमार पड़े तो उनके बेटे राशिद ने सेल्टिक को उनकी हालत बताने के लिये खत लिखा। और पता दोस्तों जवाब में क्या सेल्टिक ने क्या किया? सेल्टिक ने उनकी तबीयत जल्द ठीक होने की शुभकामनाओं के साथ इलाज के लिये 100 यूरो का बैंकड्रॉफ्ट भी भेजा। इससे पता चलता है कि वो कितने बड़े खिलाड़ी थे और सेल्टिक में उनकी कितनी इज्जत थी।
1976 में सलीम को पहला बिधान चंद्र रॉय अवार्ड भी मिला। बाद में सन् 1980 में 76 साल की उम्र में सलीम की मौत हो गई। लेकिन दोस्तों आप सोच भी नहीं सकते कि हमने इस लीजेंड के साथ क्या किया? हमारे देश में सलीम को जानने वाले लोग बहुत ही कम हैं जबकि विदेशों मे जब भी इंडियन फुटबॉल की बात होती है तो सबसे पहले सलीम का ही नाम आता है। और सेल्टिक ने तो अपनी वेबसाइट पर आज भी सलीम का नाम बड़े गर्व से लिखा हुआ है।