कायदे (कानून) तोड़ने के
लिये एक छोटे से लड़के को, जिसकी उम्र १५ या १६ साल की थी और
जो अपने को आज़ाद कहता था,
बेंत की सजा दी गयी। वह नंगा किया गया और बेंत की टिकटी से बाँध
दिया गया। जैसे-जैसे बेंत उस पर पड़ते थे और उसकी चमड़ी उधेड़ डालते थे, वह 'भारत माता की जय!' चिल्लाता
था। हर बेंत के साथ वह लड़का तब तक यही नारा लगाता रहा, जब
तक वह बेहोश न हो गया। बाद में वही लड़का उत्तर भारत के आतंककारी कार्यों के दल का एक बड़ा नेता
बना। पं० जवाहरलाल नेहरू(साभार
विकीपीडिया)
नेहरू कुछ भी कहें लेकिन भारत की स्वतंत्रता में आजाद का योगदान अतुलनीय था। सीमित संसाधनों में उन्होंने देश के लिये जो किया उसकी सिर्फ कल्पना की जा सकती है। उसे करने के लिये तो हम सोच भी नहीं सकते क्योंकि नई पीढ़ी को देश से कोई मतलब ही नहीं है। और गांधी नेहरू की जोड़ी को तो देश के आजाद होने या ना होने से भी कोई खास मतलब नहीं था। जहां गांधी एक अच्छी सरकार चाहते थे जिसे कौन चला रहा है उससे उन्हें कोई मतलब नहीं था, तो वहीं नेहरू को सत्ता में हिस्सेदारी से मतलब था।
ऐसे नेताओं
के भरोसे तो हम कभी आजाद हो ही नहीं पाते, वो
तो भला हो आजाद,शहीद-ए-आजम, और बाकी
क्रांतिकारियों का कि उन्होने प्राणों की आहुति देकर हमें आजाद कराया। और बदले में
हमने उन्हें क्या दिया ? आजाद भारत को एक भ्रष्ट,सांप्रदायिक देश बना दिया। वो देश जिसे अपने इतिहास पर ना तो गर्व है और
ना ही उसकी कोई चिंता,वो देश जो मांगी हुई भाषा, संस्कार, संस्कृति और परम्पराओं
के पीछे अंधी दौड़ लगा रहा है। और अपनी परम्पराओं,संस्कारों, भाषाओं और संस्कृति
की बात करने में शर्मिंदगी महसूस करता है। क्योंकि युवाओं के इस देश के नागरिकों
को लगता है कि ये सब दकियानूसी बातें हैं।
इन शहीदों
ने भारत को एक समाजवादी देश बनाने का सपना देखा था जहां हर नागरिक को बराबरी के
अधिकार मिलें। लेकिन यहां तो अमीरों के लिए अलग और गरीबों के लिए अलग कानून है। और
समाजवाद के नाम को बेचकर नेता अपने पारिवारिक आयोजनों पर अरबों रुपये उड़ा रहे
हैं। पहले अंग्रेजी अदालते थीं जहां हिन्दुस्तानियों को न्याय नहीं मिलता था और अब
अपनी अदालतें होने के बाद भी अमीर जैसा चाहते हैं वैसा फैसला आ जाता है। हालांकि
इसमें अदालतों की कोई गलती नहीं है ना ही मैं उन पर सवाल उठा सकता हूं। लेकिन
कानून की छोटी-छोटी कमियों और कुछ भ्रष्ट अधिकारियों, वकीलों के चलते आज हालात ये
हैं कि गरीबों का तो कानून से भरोसा ही उठ गया है। और अमीर उसका जैसा चाहते हैं
वैसा इस्तेमाल करते हैं।
आजादी के 6
दशकों से भी ज्यादा वक्त गुजरने के बाद भी देश के ज्यादातर लोगों को पीने का साफ
पानी उपलब्ध नहीं है, शौचालयों की उपलब्धता तो सभी जानते ही हैं। सड़कें या तो हैं
नहीं और अगर हैं तो पहचानना मुश्किल है कि सड़क में गढ्ढे हैं या गढ्ढों में सड़क।
बहुत से गांवों में आज भी बिजली नहीं है, और जहां है वहां तो कब आती है और कब जाती
है उसका पता ही नहीं चलता। किसानों को फसल उगाने से पहले तो खाद,बीज और पानी के
लिये परेशान होना पड़ता है, और फसल उगाने के बाद उसके उचित दाम पाने के लिए। जहां
महिलाएं आज भी सुरक्षित नहीं हैं और देश के लिए सीमा पर खड़े सैनिकों की जान की तो
कोई कीमत ही नहीं है।
नेताओं का
परम् ध्येय है सिर्फ पैसे कमाना और अपने परिवार और रिश्तेदारों की बढ़ोत्तरी देश
से तो किसी को कोई मतलब ही नहीं है।
ये आजाद के
सपनों का देश नहीं हो सकता, बिल्कुल नहीं हो सकता। लेकिन इसकी इस हालत के
जिम्मेदार भी तो हमीं हैं। एक वो थे जो 24 साल की उम्र में देश पर कुर्बान हो गये
थे और एक हम हैं जिन्हें देश से कोई मतलब ही नहीं। अब वक्त आ गया है कि हमें एकजुट
होकर भारत देश को उन शहीदों के सपनों का देश बनाने के लिये पूरी ताकत से जुटना
होगा। हमारी तरफ से भारत मां के इस सपूत को यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
आजाद जी को नमन्