Friday 27 February 2015

क्या इसी देश का सपना देखा था "आजाद" ने ??

कायदे (कानून) तोड़ने के लिये एक छोटे से लड़के को, जिसकी उम्र १५ या १६ साल की थी और जो अपने को आज़ाद कहता था, बेंत की सजा दी गयी। वह नंगा किया गया और बेंत की टिकटी से बाँध दिया गया। जैसे-जैसे बेंत उस पर पड़ते थे और उसकी चमड़ी उधेड़ डालते थे, वह 'भारत माता की जय!' चिल्लाता था। हर बेंत के साथ वह लड़का तब तक यही नारा लगाता रहा, जब तक वह बेहोश न हो गया। बाद में वही लड़का उत्तर भारत के आतंककारी  कार्यों के दल का एक बड़ा नेता बना। पं० जवाहरलाल नेहरू(साभार विकीपीडिया)

नेहरू कुछ भी कहें लेकिन भारत की स्वतंत्रता में आजाद का योगदान अतुलनीय था। सीमित संसाधनों में उन्होंने देश के लिये जो किया उसकी सिर्फ कल्पना की जा सकती है। उसे करने के लिये तो हम सोच भी नहीं सकते क्योंकि नई पीढ़ी को देश से कोई मतलब ही नहीं है। और गांधी नेहरू की जोड़ी को तो देश के आजाद होने या ना होने से भी कोई खास मतलब नहीं था। जहां गांधी एक अच्छी सरकार चाहते थे जिसे कौन चला रहा है उससे उन्हें कोई मतलब नहीं था, तो वहीं नेहरू को सत्ता में हिस्सेदारी से मतलब था।
ऐसे नेताओं के भरोसे तो हम कभी आजाद हो ही नहीं पाते, वो तो भला हो आजाद,शहीद-ए-आजम, और बाकी क्रांतिकारियों का कि उन्होने प्राणों की आहुति देकर हमें आजाद कराया। और बदले में हमने उन्हें क्या दिया ? आजाद भारत को एक भ्रष्ट,सांप्रदायिक देश बना दिया। वो देश जिसे अपने इतिहास पर ना तो गर्व है और ना ही उसकी कोई चिंता,वो देश जो मांगी हुई भाषा, संस्कार, संस्कृति और परम्पराओं के पीछे अंधी दौड़ लगा रहा है। और अपनी परम्पराओं,संस्कारों, भाषाओं और संस्कृति की बात करने में शर्मिंदगी महसूस करता है। क्योंकि युवाओं के इस देश के नागरिकों को लगता है कि ये सब दकियानूसी बातें हैं।
इन शहीदों ने भारत को एक समाजवादी देश बनाने का सपना देखा था जहां हर नागरिक को बराबरी के अधिकार मिलें। लेकिन यहां तो अमीरों के लिए अलग और गरीबों के लिए अलग कानून है। और समाजवाद के नाम को बेचकर नेता अपने पारिवारिक आयोजनों पर अरबों रुपये उड़ा रहे हैं। पहले अंग्रेजी अदालते थीं जहां हिन्दुस्तानियों को न्याय नहीं मिलता था और अब अपनी अदालतें होने के बाद भी अमीर जैसा चाहते हैं वैसा फैसला आ जाता है। हालांकि इसमें अदालतों की कोई गलती नहीं है ना ही मैं उन पर सवाल उठा सकता हूं। लेकिन कानून की छोटी-छोटी कमियों और कुछ भ्रष्ट अधिकारियों, वकीलों के चलते आज हालात ये हैं कि गरीबों का तो कानून से भरोसा ही उठ गया है। और अमीर उसका जैसा चाहते हैं वैसा इस्तेमाल करते हैं।
आजादी के 6 दशकों से भी ज्यादा वक्त गुजरने के बाद भी देश के ज्यादातर लोगों को पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं है, शौचालयों की उपलब्धता तो सभी जानते ही हैं। सड़कें या तो हैं नहीं और अगर हैं तो पहचानना मुश्किल है कि सड़क में गढ्ढे हैं या गढ्ढों में सड़क। बहुत से गांवों में आज भी बिजली नहीं है, और जहां है वहां तो कब आती है और कब जाती है उसका पता ही नहीं चलता। किसानों को फसल उगाने से पहले तो खाद,बीज और पानी के लिये परेशान होना पड़ता है, और फसल उगाने के बाद उसके उचित दाम पाने के लिए। जहां महिलाएं आज भी सुरक्षित नहीं हैं और देश के लिए सीमा पर खड़े सैनिकों की जान की तो कोई कीमत ही नहीं है।
नेताओं का परम् ध्येय है सिर्फ पैसे कमाना और अपने परिवार और रिश्तेदारों की बढ़ोत्तरी देश से तो किसी को कोई मतलब ही नहीं है।

ये आजाद के सपनों का देश नहीं हो सकता, बिल्कुल नहीं हो सकता। लेकिन इसकी इस हालत के जिम्मेदार भी तो हमीं हैं। एक वो थे जो 24 साल की उम्र में देश पर कुर्बान हो गये थे और एक हम हैं जिन्हें देश से कोई मतलब ही नहीं। अब वक्त आ गया है कि हमें एकजुट होकर भारत देश को उन शहीदों के सपनों का देश बनाने के लिये पूरी ताकत से जुटना होगा। हमारी तरफ से भारत मां के इस सपूत को यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
आजाद जी को नमन्

Monday 23 February 2015

सॉरी

सॉरी पापा मैं गलत था, आप हमेशा सही कहते थे, काश मैंने आपकी बात मान ली होती। लेकिन अब क्या हो सकता है? अब तो मैं इतना आगे निकल आया हूं कि वापस लौट नहीं सकता और आगे जाने की अब ना तो हिम्मत है और ना ही हौंसला। चार साल की इस यात्रा में मीडिया ने इतने दर्द दिये हैं जिसकी बात सोचकर अब तो रोना भी नहीं आता, क्योंकि इस पेशे में ज़ज्बातों के लिये कोई जगह नहीं है। और वैसे भी अगर मैं असफलता से डर कर रोने बैठ गया तो मुझे खुदको आपका बेटा कहने का कोई हक नहीं है। मुझे आज भी याद हैं आपके वो संघर्ष भरे दिन जब आप हमारे बेहतर भविष्य के लिये खाने सोने की परवाह किए बिना दिन-रात काम करते थे, इस उम्मीद में कि जल्द ही मैं बड़ा होकर आपका सहारा बनूंगा। लेकिन अफसोस बड़ा होकर आपका सहारा बनने के बजाय मैंने आपको और ज्यादा संघर्ष करने के लिये मजबूर कर दिया। जिस वक्त आपको मेरी सबसे ज्यादा जरूरत थी उस वक्त मैंने सिर्फ अपने लिेये सोचते हुये आपका सहारा बनने के बजाय नीरज का भी भविष्य दांव पर लगाते हुये आपको और ज्यादा मेहनत करने पर मजबूर कर दिया। सॉरी पापा आप सही कहते थे मैं ना तो अच्छा बेटा हूं और ना ही अच्छा इंसान। रही बात टैलेंटेड होने की तो वो घमंड भी पूरी तरह से चकनाचूर हो गया। जिस लेखनी के दम पर मैं 2 साल से हर किसी को चैलेंज करता आ रहा था, वो इतनी घटिया है इसका अंदाजा भी नहीं था मुझे। सॉरी पापा मैंने आपकी मेहनत के लाखों रुपये ऐसे ही उड़ा दिये। मुझे पता है पापा आप बहुत दिनों से नई कार लेने की सोच रहे हैं लेकिन मेरी पढ़ाई की वजह से आप बस सोच ही पा रहे हैं। सॉरी नीरज मेरी वजह से तुम्हारे बहुत से सपने अधूरे ही रह गये। स़़ॉरी अंकल मैं आपका आदर्श बेटा नहीं बन पाया। सॉरी मम्मी मेरी वजह से आपने पापा से बहुत बार लड़ाई की, लेकिन आपकी उस लड़ाई के बदले में मैं आपको गर्व का एक क्षण भी नहीं दे पाया। सॉरी दोस्त मैं तुम्हारे भरोसे पर बिल्कुल भी खरा नहीं उतर पाया। स़़ॉरी वरुण सर अब मैं आपका फेवरेट स्टूडेंट कहलाने के लायक नहीं रहा।
"सॉरी"

Monday 9 February 2015

"आप" को देखकर देखता रह गया...

जी हां जनता को कुछ यही लगा था जब आप राजनीति में आये थे। आपने वादे ही इतने बड़े-बड़े किये थे। वीआईपी कल्चर को खत्म करेंगे,बिजली,पानी मुफ्त(सस्ती) करेंगे, भ्रष्टाचार का अंत करेंगे। अंबानी-अदानी को जेल भेजेंगे और सच्चाई से परिपूर्ण आचरण करेंगे। बातें तो आपने और भी बहुत सी की थीं लेकिन आपका ज्यादा ध्यान भ्रष्टाचार को मिटाने पर था। या यूं कहें कि आपकी लड़ाई का आधार ही भ्रष्टाचार मिटाना था। आपकी सभाओं में नारे भी लगते थे "भ्रष्टाचार का एक ही काल, केजरीवाल,केजरीवाल" पहले आपने कांग्रेस को भ्रष्टाचारी घोषित किया,हमने यकीन भी कर लिया क्योंकि दशकों तक केंद्र में और 15 सालों से दिल्ली में कांग्रेस का ही राज था और घोटाले अपने चरम पर थे। कॉमनवेल्थ गेम्स,टूजी,कोल ब्लॉक, जैसे अनगिनत घोटालों का खुलासा हो रहा था। और आपकी अन्ना के साथ मिलकर शुरू की गई मुहिम के चलते पूरा देश करप्शन के खिलाफ अभूतपूर्व गुस्से में था जिसको भुनाने के लिये आपने अपना राजनैतिक दल बना लिया जिसका नाम आपने रखा "आम आदमी पार्टी" । आपके काम और पार्टी के नाम को देखकर बड़ी उम्मीदें जगीं। दबे कुचले लोगों को लगा कि अब उनके दिन बहुरने वाले हैं क्योंकि उनके हित की राजनीति करने वाला आ गया है। और भ्रष्टाचारियों को उनके दिन पूरे होते दिखे। दिल्ली में चुनाव हुये और जनता ने आपको 28 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में चुना। आपने कहा कि हम विपक्ष में बैठेंगे क्योंकि हमारे पास सरकार बनाने के लिये आवश्यक संख्याबल नहीं है। और उससे पहले ही आपने अपने बच्चों की कसम खाई थी कि ना तो किसी से समर्थन लेंगे और ना ही किसी को समर्थन देंगे। लेकिन धीरे-धीरे परिस्थितियां बदलीं और आपने पता नहीं किस जनता से पूछकर(क्योंकि जनता की राय का खुलासा आपने नहीं किया था) कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना ली। जी हां उस कांग्रेस के समर्थन से जिसे आप सबसे बड़ी भ्रष्टाचारी पार्टी मानते थे। चुनावों के दौरान आप बार बार तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ 370 पेज का सबूत लहरा कर सरकार बनते ही उनपर मुकदमा ठोंकने की बात करते थे। फिर आपने उन्हीं शीला जी की पार्टी के समर्थन से सरकार बनाई और सारे सबूत लुप्त हो गये। आपने कहा था कि सत्ता में आते ही बिजली कंपनियों का ऑडिट कराकर भ्रष्टाचारियों को जेल भेजेंगे। आपने सत्ता में आने के बाद ऑडिट का ऑर्डर तो दिया लेकिन आपके 49 दिवसीय कार्यकाल में वो ऑडिट पूरा नहीं हुआ। सत्ता में आने से पहले आप भ्रष्टाचारियों को जेल भेज रहे थे सत्ता में आने के बाद आपने कहा कि जो आपसे रिश्वत मांगे उसका स्टिंग करके हमारे पास लाओ तब हम कार्यवाही करेंगे। अब आपको कौन समझाये कि जनता को स्टिंग करने की ट्रेनिंग नहीं मिली है। अगर कुछ गड़बड़ हो जाये तो बेचारी जनता को भ्रष्टाचारी जान से भी मार डालेंगे क्योंकि अगर वो सरकारी ऑफिसर की जान ले सकते हैं तो जनता का तो वैसे भी कोई माई-बाप नहीं होता। आपने बिजली पानी के दाम कम किये ये सराहनीय कदम था लेकिन मान्यवर ये स्लैब बनाकर दाम कम करने की बात तो आपने नहीं की थी। 666 लीटर पानी मुफ्त और उसके बाद का पानी पहले के रेट से भी ज्यादा रेट पर। बिजली के शुरूआती 200 यूनिट सस्ते, 200-400 उससे महंगे और फिर और महंगे। अब आप ही बताओं कि 4 लोगों का परिवार 200 यूनिट बिजली और 666 लीटर पानी में कैसे गुजारा कर सकता है ? और दिल्ली के लगभग 50 % इलाकों में अगर पानी की लाइन ही नहीं है तो उन्हें इस योजना से क्या लाभ हुआ? जबकि इस योजना की सबसे ज्यादा जरूरत उन्हें ही है। साहब आपने जीतने से पहले कहा था कि आप और आपके साथी बंगला-गाड़ी नहीं लेंगे। जीतते ही आपने गाड़ियां भी लीं और वीआईपी नंबर भी। आपके बंगले की कहानी तो सभी को पता है। इस्तीफे के बाद भी आपने बंगला नहीं खाली किया और लगभग  2.58 लाख रुपये हर महीने किराया चुकाया, आप खुदको आम आदमी कहते हैं अच्छी बात है। लेकिन श्रीमान, क्या इस देश का आम आदमी इतने रुपये सिर्फ रहने पर खर्च कर सकने की हालत में हैं ? जी नहीं बल्कि इतने पैसों में एक आम आदमी अपनी बेटी की शादी निपटा देता है। आपने कहा था कि सत्ता में आते ही हम रोज लोगों की समस्याएं खुद सुनेंगे। आपने कोशिश भी की लेकिन अपनी आदत से मजबूर आप भागकर सचिवालय की छत पर पंहुच गये। आपके मंत्री सोमनाथ भारती जी जो कि वकालत करने के साथ ही पोर्न साइट्स भी चलाते हैं। आधी रात को शहंशाह बनकर रेड मारने निकल लिये और महिलाओं को सबके सामने पेशाब करने के लिये मजबूर किया, एम्स तक पीछा करके उनका यूरीन टेस्ट कराया। श्रीमान ये कैसा स्वराज है ? मुख्यमंत्री रहते हुये आप धरने पर बैठ गये वो भी तब जबकि गणतंत्र दिवस नजदीक था। आपके हिसाब से देश के गणतंत्र दिवस से ज्यादा जरूरी आपका धरना था जिसके लिये आपने  महिला सुरक्षा को मुद्दा बनाया था। आपको पता है अरविंद जी कि आपके इस धरने को पाकिस्तान के न्यूज चैनेल कैसे दिखा रहे थे ? वहां लोगों का कहना था कि जो काम हम इतने सालों में नहीं कर पाये वो अरविंद ने आते ही कर दिया। भारत मे अराजकता का माहौल बना दिया। गणतंत्र दिवस खतरे में आ गया था। लेकिन कुछ भी हो आपका मीडिया मैनेजमेंट जबरदस्त है। धरने में कब आप सड़क पर एक रजाई में सो रहे हैं और उसका कौन सा फ्रेम सही रहेगा उसका बेहद शानदार तरीके से ख्याल रखा था मीडिया ने। जब आपने मंच से खुद को अराजक कहा तो आपको क्या लगता है कि आप हीरो बन गये ? नहीं अरविंद आप हीरो नहीं नक्सली बन गये क्योंकि आप और वो दोनों संविधान का अपमान करना अपना हक समझते हैं। बस फर्क इतना है कि वो कम पढ़े लिखे हैं और हथियारों के दम पर संविधान का मखौल उड़ाते हैं और आप इंजीनियर और आईआरएस रह चुके हैं तो बोलकर। जब मुख्यमंत्री के तौर पर आप झंडारोहण करते हैं तो उसे सलामी नहीं देते और जब आपको गणतंत्र दिवस के लिये आमंत्रित नहीं किया जाता तो आपको बुरा लगता है। जब आपको लगा कि आपने जो वादे किये थे वो पूरे नहीं कर पायेंगे तो आपने जनलोकपाल बिल का बहाना बनाकर इस्तीफा दे दिया। जनलोकपाल बिल पारित कराने में इतनी जल्दबाजी किस बात की ? जनलोकपाल से ना तो लोगों को खाना मिलेगा ना घर और ना ही सस्ती बिजली,पानी। फिर उसके लिये दिल्ली वासियों के सपनों से मजाक क्यों ? सिर्फ इसलिये कि आपको मुगालता हो गया था कि आप पीएम बन सकते हैं ? बस दिया इस्तीफा और निकल पड़े वाराणसी वाया ट्रेन जेब में 500 रुपये लिये। जमकर प्रचार किया लगभग पौने 4 लाख वोटों से हारे और फिर विमान से वापस आये जबकि आपके चमत्कारिक 500 रुपये फिर भी बचे रह गये। आपकी लड़ाई भ्रष्टाचार से थी लेकिन ये लड़ाई कम से कम मेरी समझ में तो नहीं आई। सिर्फ खुलासे कर के आप क्या साबित करना चाहते हैं ? और ये जो आप ईमानदारी के प्रमाणपत्र बांटते हैं उसे पाने का क्या तरीका है? आम आदमी पार्टी की सदस्यता के साथ फ्री मिलता है ? आपके हिसाब से तो इस ब्रह्मांड में एक आप ही ईमानदार हैं बाकी सब चोर हैं,भ्रष्ट हैं। आप चाहे जो कहें लेकिन सच तो ये है कि, अरविंद जी आप सिर्फ नकारात्मक राजनीति करते हैं और कुछ नहीं।