Wednesday 2 November 2016

हिंदी में फुटबॉल कवर करने वाले महानुभावों, अब बस करो यार!

हिंदी में जब आप स्पोर्ट्स कवर करते हैं तो यहां इसकी अघोषित पहली शर्त यह मानी जाती है कि आपको तेंडुलकर के स्ट्रेट ड्राइव, कोहली के कवर ड्राइव और धोनी के हेलीकॉप्टर शॉट पर ललित निबंध लिखना आना ही चाहिए। मुझे नहीं आते ये ललित निबंध, लेकिन मुझे जो आता है वो अच्छे से आता है। मैं बहुत प्यार से फुटबॉल पर लिखता हूं, किसी दिन कोई गलती चली जाती है तो मैं सो नहीं पाता। मुझे लगता है कि मैंने कैसे, आखिरी कैसे उस गेम के बारे में गलत लिखा जिससे मैं प्यार करता हूं।

हालांकि साल 2013 तक मैं भी फुटबॉल को कोई खास पसंद नहीं करता था। हां एक बात है कि इस गेम के बारे में मैं अपने साथ के फुटबॉल ना पसंद करने वालों से थोड़ा ज्यादा जानता था। इसके पीछे शायद अखबार पढ़ने की मेरी आदत जिम्मेदार थी, जो मीडिया में आने के साथ ही हमेशा के लिए छूट गई। साल 2013 से फुटबॉल में थोड़ी रुचि आई तो अखबारों में खोज-खोजकर फुटबॉल पढ़ता। हिंदी में फुटबॉल की खबरें ना मिलने से काफी निराशा होती। इससे उबरने के लिए मैंने दुनिया की सबसे बोरिंग भाषा अंग्रेजी में छपने वाला द टाइम्स ऑफ इंडिया पढ़ना शुरू किया। मैं TOI सिर्फ दो कारणों से खरीदता था, पहला तो यह कि वो फुटबॉल को सही तरीके से कवर करते हैं और दूसरा कारण यह था कि उसमें पेज बहुत सारे होते हैं जो कई तरीके से यूजफुल हो सकते हैं।

पहली नौकरी टीवी मीडिया में की तो देखा कि टीवी पर वर्ल्ड कप के दौरान आधे घंटे का स्पेशल प्रोग्राम जा रहा है। अच्छा लगा कि चलो चार साल में एक बार ही सही कवर तो कर रहे हैं। फिर देखा कि प्रोग्राम प्रोड्यूसर्स को कोई इंट्रेस्ट नहीं है बस भेड़चाल के चलते बना दिया जा रहा है। कई बार भयानक ब्लंडर भी चल जाते थे क्योंकि किसी को पता ही नहीं होता था कि ये गलत है या सही। फिर वेब मीडिया में गया तो स्पेस का झंझट खत्म हुआ और मैंने फुटबॉल कवर करना शुरू किया। हालांकि कम ही लोग पढ़ते थे लेकिन मैं थोड़ा ज्यादा वक्त देकर फुटबॉल की खबरों को अलग से बनाता था। कई खबरें तो ऐसी भी रही जो इंडियन इंग्लिश मीडिया से भी पहले मैंने ब्रेक की। जैसे 2015 में मिरास्लोव क्लोस ने कहा था कि लाजियो के साथ आने वाला सीजन उनका प्रफेशनल फुटबॉलर के तौर पर आखिरी सीजन होगा। इसी वक्त बार्सिलोना के ब्राजीलियन राइट बैक दानी अलावेस ने तमाम चर्चाओं के बाद बार्सिलोना के साथ अपना कॉन्ट्रैक्ट एक साल के लिए आगे बढ़ाया था। ऐसी कई खबरें थीं जो अपने पुराने संस्थान के साथ इंडिया में सबसे पहले मैंने ब्रेक की। इसके जरिए मैं ये नहीं कह रहा कि मेरे सोर्स इतने बड़े हैं, मैं डेस्क जॉब करता था। लेकिन मैं तमाम कामों के बीच भी इंटरनैशनल मीडिया के जरिए इंटरनैशनल फुटबॉल में क्या चल रहा है इससे वाकिफ रहता था।


मेसुत ओज़िल

वहां तो खैर फुटबॉल की कवरेज मैंने की, जब तक मुझे जर्नलिस्टिक कामों से इतर के कामों में नहीं लगा दिया गया। फिर वहां से नौकरी छोड़कर मैं प्रिंट मीडिया में आया। प्रिंट में मेरी एंट्री सही वक्त पर हुई थी। यूरो 2016 चल रहा था आधे से ज्यादा पेज फुटबॉल की खबरों से भरा होता था। मेरे लिए तो ये ड्रीम जॉब थी। फिर यूरो खत्म हुआ और यहां से मुझे समझ आने लगा कि फुटबॉल हमेशा कवर क्यों नहीं की जा सकती। दरअसल प्रिंट की अपनी समस्याएं हैं, पेज सीमित होता है। क्रिकेट को ज्यादा जगह देनी ही है क्योंकि लोग वही पढ़ते हैं (ऐसा माना जाता है) । ले देकर 3-4 कॉलम मिल जाते हैं उसी में मैं अपना शौक पूरा कर लेता हूं। कई बार मुझे समझाया भी जा चुका है कि मैं खुद को फुटबॉल जर्नलिस्ट ना समझूं क्योंकि मुझे सब करना है। लेकिन मैं लोगों को कैसे समझाऊं कि मुझे कुछ समझने की जरूरत ही नहीं है। मैं फुटबॉल जर्नलिस्ट ही हूं। जैसे लोग मजबूरी में फुटबॉल पर लिख लेते हैं वैसी ही मजबूरी में मैं क्रिकेट पर भले ही लिख लेता हूं लेकिन मैं फुटबॉल जर्नलिस्ट ही हूं। वैसे भी इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता कि मैं क्या कवर कर रहा हूं। फर्क इस चीज से पड़ता है कि मैं उसे कितनी ईमानदारी से कर रहा हूं।

हिंदी मीडिया में फुटबॉल पढ़ने वालों को बेहतर पता होगा कि क्या को क्या लिखा जा रहा है। ये बहुत ही शर्मनाक स्थिति है लेकिन मजेदार बात यह है कि इस पर किसी को शर्म ही नहीं आ रही। अपना मजाक उड़ाए जाने पर भी लोग कूल हैं। उन्हें लगता है कि कपिल देव की 175 रन की इनिंग्स उन्हें याद है और यही बहुत है। बॉस, अब हो गया वो वाले दिन गए। माना क्रिकेट के चाहने वाले इस देश में बहुत हैं लेकिन सरजी बाकी गेम्स को इग्नोर करना तो बंद ही कर दो। मैं ये नहीं कहता कि आप फुटबॉल कवर ही करो। मत करो यार, कोई जबरदस्ती थोड़े ना है। लेकिन करो तो तरीके से करो। बास्टियन श्वांसटाइगर और एना इवानोविच की शादी की खबर के साथ मेसुत ओज़िल और उसकी गर्लफ्रेंड की फोटो मत लगाओ। रोनाल्डो द्वारा बार्सिलोना के लिए पांच गोल मत कराओ, मैनचेस्टर यूनाइटेड को प्रीमियर लीग के क्वॉर्टर फाइनल में मत पहुंचाओ। पेप गॉर्डियोला के पांच नाम मत लिखो। फुटबॉलर्स की गर्लफ्रेंड्स की हॉट फोटोज की गैलरी मत बनाओ। जो नहीं हो सकता मत करो सर, प्लीज। खुद को सर्वज्ञानी समझना छोड़ दो। सबको पता है कौन प्लेयर कहां, किस पोजिशन पर खेलता है। गोल करने वाला हर प्लेयर स्ट्राइकर नहीं होता ना ही हर अटैकर को आप स्ट्राइकर लिख सकते हैं। विंगर, विंगर ही रहेगा वो स्ट्राइकर नहीं हो सकता भले ही वो साक्षात रोनाल्डो ही क्यों ना हो। माफ कर दो सर, आपसे ना हो पाएगा। आप छोड़ दो, हम मैनेज कर लेंगे। मारका, मिरर, स्काईस्पोर्ट्स इंडिया में भी खुल जाते हैं। हम वहीं पढ़ लेंगे सर, आप प्लीज हिंदी में फुटबॉल कवर कर हम पर एहसान मत करो।