Tuesday 23 April 2013

SECULARISM

भारत देश की आज़ादी के लगभग साथ ही इस देश को सेक्युलरइज़्म नामक बीमारी लग गई थी जो दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है..। वैसे तो सेक्युलर का मतलब होता है सबको साथ लेकर चलने वाला जाति धर्म के आधार पर भेदभाव ना करने वाला सबको एक जैसा मानने वाला। पर हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे यहाँ इसका ठीक उल्टा है यहाँ सेक्युलर वो है जो हिंदुओं को दुनिया का सबसे निकृष्ट प्राणी माने,उनकी कोई सुनवाई ना करे, उनके अधिकार अल्पसंख्यकों के बाद रखे। उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करे, उन्हे हर पल ये एहसास कराए कि उनका इस देश में हिंदू के रूप में पैदा होना सबसे घिनौना पाप है.।
और ये सब सिर्फ़ 18.8% वोटबैंक के लिए जो कि हमारे देश में अल्पसंख्यकों की कुल आबादी है। राजनेताओं में तो खुद को सेक्युलर साबित करने की होड़ लगी रहती है आए दिन नेता बयान देते हैं कि वो सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ हैं और उन्हे रोकने के लिए जान भी दे सकते हैं। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जब नेताओ ने सारी नैतिकता को ताक पर रखके ऐसे ऐसे बयान दिए हैं और ऐसी-ऐसी घोषणायें की हैं जिससे साफ हो जाता है कि इनके लिए सेक्युलर होने का एक ही मतलब है मुस्लिम परस्त होना। फिर चाहे वो पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा संसाधनों पर पर पहला हक़ अल्पसंख्यकों का होना चाहिए ये बयान हो। या उत्तर प्रदेश सरकार की हमारी बेटी योजना जिसमे कि 10वीं पास करने वाली मुस्लिम लड़कियों को सरकार द्वारा २०००० की नगद सहायता दी जाती है ध्यान दीजिएगा योजना का नाम है हमारी बेटियाँ।  क्या हिंदू बेटियाँ सिर्फ़ इसलिए इसके लायक नहीं हैं क्योंकि उनका जन्म किसी मुस्लिम परिवार में नही हुआ? या अखिलेश यादव सिर्फ़ मुस्लिमों के चुने हुए मुख्यमंत्री हैं? हिन्दुओ के धर्मस्थलों जैसे कैलाश मानसरोवर, अमरनाथ यात्रा इत्यादि की यात्रा पर टैक्स लगता है। और मुस्लिमों को हज यात्रा पर सब्सिडी दी जाती है संविधान में लिखा है कि सरकारी मद से किसी मंदिर को पैसा नही दिया जा सकता जबकि मस्जिदों और गिरिजाघरों को फंड दिया जा सकता है हिंदू मंदिरों पर टैक्स और मस्जिद गिरजाघर टैक्सफ्री ये है धर्मनिरपेक्षता?
कोई नेता विजयदशमी या नवरात्रों के लिए भोज का आयोजन नहीं करता जबकि इफ्तार पार्टियाँ पूरे रमजान चलती रहती हैं। उसपे विडम्बना ये कि अगर कोई हिंदू हितों की बात करता है तो वो सांप्रदायिक हो जाता है। हमारा देश करोड़ों बांग्लादेशियों को पनाह दे सकता है लेकिन पाकिस्तान से आए एक भी हिंदू के लिए हमारे पास जगह नहीं है, ये धर्मनिरपेक्षता है ?
न्यायालय द्वारा आतंकवादी साबित हो चुके और 25 जुलाई 2008 में बंगलूरु में हुए बम विस्फोट के सिलसिले में सज़ा काट रहे पीडीपी{केरल} के नेता अब्दुल नसीर मदनी की बेटी की शादी में शरीक होने केरल कांग्रेस और लेफ्ट के सारे नेता पहुँच जाते हैं। अफ़ज़ल गुरु की फाँसी की सज़ा माफ़ करने की माँग होती है, यहाँ तक कि कश्मीर विधानसभा में भी ये माँग की जाती है। जेकेएलएफ का नेता यासीन मलिक गुरु की सज़ा माफी के लिए पाकिस्तान जाके अनशन करता है जहाँ उसका साथ आतंकवादी हाफ़िज सईद देता है।  इसके बावजूद हमारी भारत सरकार ऐसे देशद्रोही पर मुक़दमा नही चला पाती है क्योंकि उसे देश से ज़्यादा मुस्लिम वोट बैंक की चिंता है, दूसरी तरफ आतंकवाद के मुक़दमे(आरोप अभी तक साबित नहीं हुआ है) का सामना कर रही साध्वी प्रज्ञा भारती को पुलिस हिरासत में अमानवीय यंत्रणा दी जाती है। उनका कसूर सिर्फ़ ये है कि मालेगाँव विस्फोट में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल उनके नाम से थी। यद्यपि उसे वो बहुत पहले बेच चुकी थी फिर भी उनकी कोई सुनवाई नही है। पुलिस हिरासत में उन्हे जो यातनायें दी जा रही हैं, जिसका उल्लेख उन्होने मानवाधिकार आयोग को लिखे अपने पत्र में किया था उसे सुनकर किसी भी इंसान की रूह तक काँप जाए मगर इसके खिलाफ कोई नहीं बोल रहा क्योंकि वो हिंदू हैं उनके साथ वोट बैंक नहीं जुड़ा। आज तक जितने आतंकवादी पकड़े गये 99% मुस्लिम हैं लेकिन इस्लामी आतंकवाद बोलने पर देश की राजनीति में भूचाल आ जाता है और इस देश के(पूर्व) गृहमंत्री खुलेआम भगवा आतंकवाद का प्रलाप करते हैं। और कहते हैं कि उनके पास बहुत सारे सबूत हैं इसे साबित करने के लिए, जिसे माँगने पर शांत हो जाते हैं। कांग्रेस के दिग्विजय सिंह कहते हैं बाटला हाउस मुठभेड़ की खबर सुनकर सोनिया गाँधी की आँख में आँसू आ गये थे। (क्योंकि मरने वाले मुस्लिम थे) उसी मुठभेड़ में दिल्ली पुलिस के बहादुर निरीक्षक मोहन शर्मा शहीद हुए थे पर उनकी शहादत पर इन्हे रोना नहीं आया। अपितु इन्होने कहा कि मुठभेड़ ही फ़र्ज़ी थी, ये है धर्मनिरपेक्षता ??????
भगवा पहनने वाला संप्रदायिक और टोपी पहनने वाला सेक्युलर ये बहुत प्रचलित पैमाना है हमारे देश में। भगवा ध्वज, भगवा रंग जो कि हिंदुओं की पहचान है उसे सांप्रदायिकता की पहचान बना दिया गया है हमारे देश में आख़िर क्यों? जागरण में लाउडस्पीकर इस्तेमाल करने के लिए सरकारी अनुमति लेनी पड़ती है वो भी एक निश्चित समयावधि के लिए मिलती है लेकिन मस्जिद के लाउड स्पीकर पर ऐसी कोई पाबंदी नही है।  मोहर्रम के जुलूस के लिए कोई पाबंदी नही है कहीं से भी निकल सकता है लेकिन दुर्गा पूजा, गणेश पूजा, इत्यादि के विसर्जन जुलूस के लिए प्रशासन रास्ता तय करता है। क्यों ? हैदराबाद में एक प्राचीन मंदिर में घंटा नहीं बजा सकते प्रशासन ने प्रतिबंध लगा रखा है.. महाराष्ट्र सरकार का हालिया आदेश कहता है कि पुलिस थानों में भगवान की कोई मूर्ति या तस्वीर नहीं लगा सकते ना कोई धार्मिक आयोजन कर सकते हैं। क्योंकि इससे अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना आती है जबकि ये आयोजन आज़ादी के बाद से ही चले आ रहे हैं ये है धर्मनिरपेक्षता???
उदाहरण तो इतने हैं कि एक महाग्रंथ लिखा जा सकता है लेकिन बात यहाँ उदाहरणों की नहीं है,बात है स्वाभिमान की आख़िर कब तक अपने ही देश में हम गुलामी झेलते रहेंगे ?